इंदौर के प्रमुख डॉक्टरों के लिए नॉन-इनवेसिव वेंटिलेटर के बारे में प्रायोगिक प्रशिक्षण
इंदौर: क्लाउड से कनेक्ट करने योग्य डिवाइस के जरिए 120 से अधिक देशों में स्लीप एप्निया तथा साँस से संबंधित अन्य बीमारियों के उपचार में मदद करने वाली, तथा डिजिटल हेल्थ के क्षेत्र में दुनिया की अग्रणी कंपनी, रेसमेड इंडिया की ओर से इंटेंसिविस्ट एवं चेस्ट फिजिशियन के लिए वर्कशॉप का आयोजन किया गया, जिसमें उन्हें बताया गया कि हॉस्पिटल तथा घर पर देखभाल में रह रहे मरीजों के लिए कब और कैसे नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन (NIV) का सुझाव देना है। रेसमेड इंडिया ऐसे लोगों और तकनीक के इर्द-गिर्द केंद्रित है, जो हेल्थकेयर के स्वरूप में बदलाव ला रहे हैं। रेसमेड अकादमी भारत में रेसमेड की क्लीनिकल शाखा है, जो शिक्षात्मक के प्रसार तथा मरीजों की भलाई के लिए NIV एवं नींद से जुड़ी बीमारियों के विषय पर चिकित्सा विशेषज्ञों के लिए साल भर शैक्षिक कार्यशालाओं का आयोजन करता है। नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन दरअसल मरीजों को वेंटिलेशन या हवा प्रदान करने का बिल्कुल नया तरीका है, जिससे साँस लेने में आसानी होती है। मरीज को वेंटिलेटर से जुड़े मास्क तथा एयर ट्यूब के जरिए वेंटिलेशन/हवा दिया जाता है। अस्पतालों के साथ-साथ घर पर लंबे समय से देखभाल के अधीन रहने वाले मरीजों के लिए अलग-अलग तरह के श्वसन रोगों में इसकी सलाह दी जाती है, और COPD इसी तरह का एक लक्षण है।
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनेरी डिजीज (COPD) दरअसल साँस से जुड़ी एक सामान्य बीमारी है, तथा साँस लेने में लगातार परेशानी एवं कम मात्रा में एयरफ्लो इसका विशेष लक्षण है जो साँसनली और / या फेफड़ों तक हवा पहुंचाने वाली कोशिकाओं में असामान्यताओं के कारण होता है, और सामान्य तौर पर ऐसा विषैले कणों या गैसों के लगातार संपर्क में आने की वजह से होता है। लंबे समय से साँस लेने में परेशानी एवं कम मात्रा में एयरफ्लो COPD की विशेषता है जो छोटी सांस न लिकाओं से जुड़ी बीमारी (जैसे कि, ऑब्स्ट्रक्टिव ब्रोंकाइलाइटिस) तथा पैरेन्काइमल के क्षतिग्रस्त होने (एम्फज़ीम) के मिश्रण के कारण होती है, और इनकी वजह हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है। यह भारत में होने वाली मौतों, खासकर सर्दियों के दौरान होने वाली मौतों के प्रमुख कारणों में से एक है। एक सर्वेक्षण ने वर्ष 2017-18 के दौरान घरेलू एवं बाहरी, दोनों तरह के प्रदूषण से 12 लाख से अधिक लोगों की मौत का दावा किया। धूम्रपान करना, धूम्रपान करने वालों के संपर्क में रहना, धुआँ, रसायन तथा निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल, COPD के सबसे सामान्य और सबसे ज्यादा जोखिम उत्पन्न करने वाले कारक हैं। मरीजों को NIV से लाभ होता है, क्योंकि यह दबाव में सहायता प्रदान करता है और इस तरह मरीज को अच्छी तरह साँस लेने में काफी मदद मिलती है। इससे उन्हें साँस लेने के लिए अतिरिक्त मेहनत नहीं करनी पड़ती और उनका जीवन पहले से बेहतर हो जाता है।
इस वर्कशॉप में साँस से जुड़ी विभिन्न प्रकार की बीमारियों में नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन (NIV) के उपयोग के विषय पर सैद्धांतिक और प्रायोगिक, दोनों तरह के प्रशिक्षण को शामिल किया गया, जिसमें एक्यूट हाइपरकैप्निक रेस्पिरेट्री फेल्योर, एक्यूट हाइपोक्सिमिक रेस्पिरेट्री फेल्योर, और क्रॉनिक रेस्पिरेट्री फेल्योर शामिल है। प्रोफेसर डॉ. रवि दोसी, विभागाध्यक्ष, एसएआईएमएस, इंदौर द्वारा इस संगोष्ठी की शुरुआत की गई, जिनके बाद जिसके बाद डॉ. मिलिंद बदली, सहायक प्रोफेसर, एमवाय और एमजीएम मेडिकल कॉलेज, डॉ. अनिल अग्रवाल, विभागाध्यक्ष, पल्मोनरी विभाग, क्योरवेल हॉस्पिटल, इंदौर, डॉ. सलिल भार्गव, विभागाध्यक्ष, पल्मोनरी मेडिसिन, एमजीएम मेडिकल कॉलेज, इंदौर, डॉ. प्रमोद झावर, वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट और स्लीप स्पेशलिस्ट, इंदौर और डॉ. सिबाशीष डे, क्लिनिकल मैनेजर, रेसमेड। डॉ. डोसी ने एनआईवी के परिचय, इसके लक्ष्य, सेटिंग्स और इंटरफेस के साथ संगोष्ठी की शुरूआत की। फिर डॉ. बदली ने हाइपोक्सिमिक फेल्योर में एनआईवी के उपयोग पर चर्चा की। डॉ. अग्रवाल का सत्र हाइपरकैप्निक फेल्योर के विषय से संबंधित था जिन्होंने मरीजों या उपयोगकर्ताओं के लिए इसके फायदों के बारे में बताया, जबकि डॉ. भार्गव ने क्रॉनिक केयर के विषय पर जानकारी दी, और डॉ. झावर ने एनआईवी के दिशा-निर्देशों से जुड़ी जानकारी साझा की, इसके अलावा, डॉ. डे ने एनआईवी के आरंभ, इसकी मॉनिटरिंग, समस्या निवारण से अवगत कराया। इस वर्कशॉप ने अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञ डॉक्टरों को सीखने, अपने विचारों को साझा करने और एक-दूसरे से जुड़ने के लिए एक मंच प्रदान किया। इस वर्कशॉप में हेल्थकेयर क्षेत्र में विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ दर्शकों को एक साथ आने का मौका मिला, जिन्होंने अपने अनुभवों एवं विचारों को साझा करने के अलावा इस क्षेत्र में मौजूद पारंपरिक बाधाओं को दूर करने का काम किया।
इस अवसर पर डॉ. सिबाशीष डे, क्लिनिकल मैनेजर, रेसमेड, ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, “NIV की वजह से COPD, मोटापा और ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया (OSA) जैसे क्रॉनिक रेस्पिरेट्री फेल्योर के उपचार में क्रांति आई है। इसके बाद, हल्के एवं मध्यम स्तर के हाइपोक्सिमिक रेस्पिरेट्री फेल्योर के मामले में इस तरह वेंटीलेटर सहायता प्रदान करना बेहद उपयोगी है और इसमें मरीज के शरीर में ट्यूब लगाए जाने से बचा जा सकता है। इस प्रकार, COPDऔर OSA के मरीजों के लिए जीवन बेहद आसान हो जाता है क्योंकि इनका घर पर इस्तेमाल करना भी बेहद आसान है, साथ ही ऐसे मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने की संभावना को कम किया जा सकता है।"